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  • लेखक की तस्वीरLalita Tripathi

लज़ीज़ तंदूरी चिकन की अनोखी कहानी

तंदूरी चिकन, जिसके बिना अधूरा है नॉनवेज का स्वाद जिसके बिना अधूरी है नॉनवेज प्रेमियों की पार्टी। नॉवेज खाने के शौकीनों में अगर हम तंदूरी चिकन का नाम ना लें तो बेमानी होगा। तंदूरी चिकन आज हर रेस्टोरेंट की जान बन चुका है। क्या आप जानते है जिस तंदूरी चिकन को आप इतने चाव से खाते है उसका इतिहास क्या है, जी हाँ ये भी उतना ही रोचक है जितना ये लज़ीज़ डिश। ज़ायकानामा में हम जानेगें कि आखिर क्या है तंदूरी चिकन का इतिहास,किसने किया इसे इज़ाद।


सबसे पहले जानते हैं कि भारत में तंदूर कैसे आया । माना जाता है कि, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी बेहद पुरानी सभ्यताओं से ही तंदूर का इस्तेमाल किया जाता रहा है। कालीबंगा की सिंधु घाटी स्थल पर छोटे, मिट्टी के प्लास्टर वाले ओवन पाए गए थे, जो एक तरफ खुलते थे और ये आज इस्तेमाल किये जाने वाले तंदूरों से बहुत मिलते-जुलते हैं।


लेकिन जब बात हो तंदूरी चिकन की तो कुंदन लाल गुजराल जी का नाम कोई कैसे भूल सकता है, जिन्होंने तंदूरी चिकन को सबसे पहले दुनिया के सामने इंट्रोड्यूस कराया| कुंदन लाल गुजराल एक भारतीय शेफ और रेस्टोरेंट मालिक रहे। वर्तमान में प्रसिंद्ध रेस्त्रां चेन मोती महल डीलक्स की नींव रखने वाले कुंदन लाल गुजराल अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में साल 1902 में जन्मे थे। कुंदन लाल के पिता कपड़े के व्यावसाय करते थे और खानदान में दूर-दूर तक कोई भी व्यावसायिक रूप से खाना पकाने से ताल्लुक नहीं रखता था|


कुंदन लाल गुजराल

पिता के काम में कोई खास बरकत नहीं होने की वजह से मैट्रिक के बाद ही कुंदन लाल ने काम की तलाश शुरू कर दिया और वे खाने के एक छोटे से रेस्टोरेंट में काम करने लगे जो पाकिस्तान के पेशावर (तब अविभाजित भारत) में स्थित था, ये रेस्टोरेंट मोती महल के ही नाम से था और उसके मालिक थे मोखा सिंह लांबा| इस रेस्टोरेंट ने भी कुंदन लाल के रहते कई एक्सिपेरिमेंट्स देखे, जैसे खाने की जगह पर ही तंदूर लगाने वाला ये पहला खाने का ठिकाना था। और इसके बाद तो तंदूर साथ में लगाने का चलन निकल पड़ा।


इधर देश विभाजन के बाद कुंदन लाल भी परिवार समेत दिल्ली आ गए| बंटवारे में घर-बार खो चुका ये परिवार यहां-वहां अपनी रोज़ी रोटी के लिए किस्मत आजमाने लगा तो इधर कुंदन लाल ने मोती महल के अपने सारे तजुर्बे का बखूबी इस्तेमाल किया और उन्होंने दरियागंज में एक ढाबा तैयार किया, जिसे नाम दिया मोती महल और ये दिल्ली के लोकप्रिय रेस्टोरेंट की शुरुआत थी और साथ ही बेहद लोकप्रिय डिशेज का भी इजाद था ।


वे सामान्य रूप से तंदूरी डिशेज के एक्सपर्ट थे। इसीलिए उन्होंने तंदूरी चिकन बनाना शुरू किया जिसे रीहाइर्डेट करने के लिए एक सॉस की ज़रूरत पड़ती थी। इसी सॉस के साथ काम करते करते उन्होंने इससे स्वादिष्ट ‘बटर चिकन’ का आविष्कार किया जो जल्दी ही सारे इलाके में फेमस होकर सबके ज़बान तक चढ़ गया।


कुंदल लाल जी ने कई मशहूर लोगों को अपने खाने का दीवाना बनाया। इन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, ज़ाकिर हुसैन और कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं जैसे जुल्फिकार अली भुट्टो, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन, जॉन एफ कैनेडी और ईरान के शाह को अपने लज़ीज़ तंदूरी व्यंजन पेश कर के उन्हें इस लज़ीज़ स्वाद का दीवाना बनाया था। इतना ही आपको जानकर हैरानी होगी बॉलीवुड में भी उनके कई कद्रदान थे। उनमें से बिगेस्ट शोमैन कहे जाने वाले बॉलीवुड एक्टर, डायरेक्टर और फिल्म मेकर राजकपूर भी कुन्दन लाल के बनाये व्यंजनों के बेहद शौकीन थे।


तंदूरी चिकन के बाद कुंदन लाल ने बटर चिकन बनाया इसके बाद उन्हें लगा कि कुछ ऐसा ही शाकाहारी लोगों के लिए भी होना चाहिए जिससे वो भी रेस्टोरेंट से जुड़े और इसके लिए उन्होंने पेश की दाल मखनी।इसके बाद उन्होंने और भी तंदूरी वेज और नॉनवेज डिशेज इंट्रोड्यूज कीं और दुनिया को पहली बार इंडियन पंजाबी खाने के जरिए भारतीय स्वाद का दीवाना बनाया । कुंदन लाल गुजराल की आदत थी खाने के साथ तरह-तरह के एक्सीपैरिमेंट करने की और उनके इसी एक्सपेरिमेंट्स ने हमें इतना लजीज़ तंदूर चिकन, दाल मखनी और बटर चिकन (मुर्ग मखनी) के स्वाद से रुबरु करवाया।


चलिए आपको बताते है की कुंदन लाल जी ने आखिर कैसे तंदूरी चिकन को ईज़ाद किया। तो बात ये है की एक दिन कुंदन लाल ने अपने रेस्टोरेंट में बचे चिकन के कुछ टुकड़ों पर मसाले लगाकर उन्हें तंदूर में कुछ देर के लिए छोड़ दिया, फिर जब उन्होंने चिकन के उन टुकड़ों को निकालकर चखा तो जो स्वाद उन्हें मिला, वो इतना अनोखा और शानदार था कि अगले ही दिन उन्होंने अपने मेन्यू में टॉप पर इस नई डिश को तंदूरी चिकन नाम से जगह दे दी। कुंदन लाल गुजराल की ये नई डिश लोगों को बहुत पसंद आई।


दरियागंज में मोती महल जैसे ही खुला उनके यहां सभी बड़े लोग चिकन खाने आया करते थे। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी तंदूरी चिकन का स्वाद इतना भाया आया कि उन्होंने उस दौर में भारत आने वाले सभी अंतर्राष्ट्रीय मेहमानों के सामने इस लाज़वाब व्यंजन को पेश किया। अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी और 37वें अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड मिल्हौस निक्सन को भी नेहरू जी ने चिकन तंदूरी का स्वाद चखाया। सभी ने इस लज़ीज़ तंदूरी चिकन के जन्मदाता को सिर आंखों पर बिठाया और यही वजह है की आज ‘मोती महल’ की चेन पूरी दुनिया में फैली हैं| ये अपने दौर का पहला रेस्टोरेंट था जिसने दुनिया को ‘पंजाबी व्यंजन’ के स्वाद से रूबरू करवाया। फिलहाल कुंदन लाल गुजराल जी का पोता, मौनिश गुजराल ‘मोती महल’ रेस्टोरेंट चेन को मैनेज कर रहे हैं और तंदूरी चिकन की इस स्वादिष्ट परंपरा को कायम रखा है।


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