Lalita Tripathi
काली मिर्च का ऐतिहासिक सफ़रनामा
अपडेट करने की तारीख: 29 दिस॰ 2020
भारतीय मसालों ने पूरी दुनिया में एक खास जगह बनायी है| कोई भी भारतीय व्यंजन बिना मसलों के तो पूरा ही नहीं हो सकता| भारत में हजारों सालों से विशेष प्रकार के औषधीय गुणों से परिपूर्ण मसालों का उपयोग पाक कला और बीमारियों के इलाज़ के लिए किया जाता रहा है|
क्या आपको पता है की आपकी रसोई में इस्तेमाल होने वाले हर मसाले का अपना एक इतिहास है, जिसे सदियों से हमने संजो के रखा है| तो चलिए हम चलते है काली मिर्च के ऐतिहासिक सफ़र पर और जानते है कैसे ये हमारे रसोई का अहम् हिस्सा बन गई|

काली मिर्च, “ब्लैक गोल्ड” और “किंग ऑफ़ स्पाइसेज़” के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर है| काली मिर्च की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की प्राचीन काल से ही इसे वैभव और ताकत का प्रतीक माना जाता रहा है| इस छोटे से दाने को हीरे की तरह संभाल कर रखा जाता था| इसका उपयोग राजाओ द्वारा लगाये गए कर के भुक्तान में किया जाता था, इसके अलावा शादी विवाह में इसे दुल्हन को उपहार स्वरुप भी दिया जाता था|
पंद्रहवी सदी सदी में वास्को-डी-गामा द्वारा समुद्र मार्ग से भारत के मालाबार तटवर्ती इलाकों की खोज का मुख्य कारण काली मिर्च का महत्व ही था| काली मिर्च का वर्णन प्राचीन तमिल साहित्य और ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में लिखी पुस्तकों में भी है|
काली मिर्च मालाबार और त्रावणकोर के जंगलो में प्रचुर मात्रा में पाया जाता, इसके अलावा कोचीन,महाराष्ट्र, मैसूर, कुर्ग, असम के खासी और सिलहट की पहाडियों पर इसकी खेती की जाती है|
काली मिर्च भारत में कैसे आयी इसको लेकर इतिहासकारों में अलग अलग मत है| कुछ लोगो का मानना है की भारत के पूर्वज ही माइग्रेशन के दौरान इसके बीज को कहीं से लेकर आए थे। कुछ शोध में यह बात सामने आई है की काली मिर्च का बीज समंदर के पानी में बहते हुए केरल के तटिए इलाके में आया था और बाद में केरल के नम और अनुकूल वातावरण में काली मिर्च खूब फूला - फला| काली मिर्च का इतिहास करीब चार से पांच हज़ार साल पुराना माना जाता है, इसके प्रमाण सिधु घाटी सभ्यता में मिले पुरातात्विक अवशेषों में भी मिलता है|

पुरातात्विक सर्वेक्षण के आधार पर हमें ये पता चलता है की काली मिर्च का आयत और निर्यात सदियों से होता आया है| प्राचीन काल से ही भारत काली मिर्च का मूल उत्पादक देश रहा है| प्राचीन मिस्र सभ्यता में भी इसका प्रमाण मिला है, जो यह दर्शाता है की मिस्र और प्राचीन भारत के अच्छे व्यापारिक सम्बन्ध थे|करीब १३०३-१२१३ ईसा पूर्व, रामेसेस – II के शव को परिरक्षित या ममीफाइड करने के दौरान उनकी नाक में काली मिर्च भरा गया था|

मिस्र के अलावा रोमन लोगो के साथ भी प्राचीन भारत के अच्छे व्यापारिक सम्बन्ध थे, जिसमे अन्य मसलों के साथ काली मिर्च का भी निर्यात किया जाता था| ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर माना जाता है की रोमन लोगों के लिए काली मिर्च एक बेशकीमती मसाला था, एक रोमन मसाला व्यापारी काली मिर्च भारत से निर्यात करने के लिए करीब ५० मिलियन सेस्टर (50 million sesterces) खर्च किया करते थे| ४१० इस्वी में जब रोम पर आक्रमण हुआ था तो रोम को नहीं लूटने की शर्त की कीमत के रूप में अलारिक द गोथ को तीन हज़ार पाउंड काली मिर्च के साथ अन्य बहुमूल्य वस्तुओ का भुगतान किया गया था|
रोमन लोगो के अलावा अरब और अन्य इस्लामिक व्यापारियो की नज़र ब्लैक गोल्ड पर पड़ी, और यही वजह रही की अरब व्यापारियो ने मसाला व्यवसाय और काली मिर्च के उत्पादन के बारे में बहुत सी अफवाहे फैला थी, जिससे किसी को भी इसकी असली कीमत का पता नहीं चल सके| दसवी सदी तक आते-आते यूरोप में भी काली मिर्च की मांग तेज़ी से बढ़ने लगी| इसकी बढती मांग और बेतहाशा कीमत की वजह से इस ब्लैक गोल्ड का उपयोग मुद्रा के रूप में भी किया जाने लगा था| ऐसा माना जाता है कि सन ९७८-१०१६ में अंग्रेज़ राजा एथेलरेड- II ने जर्मन व्यापारियो से १० पौंड काली मिर्च, व्यापार के शर्त के रूप में वसूल किये|
मध्य काल आते – आते न केवल अरब बल्कि अन्य मसाला व्यापारी भी इस किंग ऑफ़ स्पाइसेज़ के व्यापर में शामिल हो गए|लगभग चौदहवी सदी में जेनोवा (आधुनिक इटली की पोर्टसिटी) एक व्यावसायिक केंद्र के रूप में उभरा और यहाँ से काली मिर्च का व्यापर व्यापार बहुत ही बड़े स्तर पर किया जाने लगा|
काली मिर्च की अत्याधिक कीमत और व्यापार पर एकाधिकार के वजह से पुर्तगालियो ने भारत के लिए समुद्र मार्ग तलाशा और इसी क्रम में सन १४९८ में वास्को डी गामा अफ्रीका के आस पास समुद्र में यात्रा करते हुए भारत पहुचने वाला पहला यूरोपियन बना| पंद्रहवी सदी के अंत तक पुर्तगालियो ने मसाला व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया|परन्तु पुर्तगाली इन स्थानों में राजनैतिक और सैन्य पकड़ नहीं बना सके, यही वजह रहा की समय के साथ इनकी पकड़ मसाला व्यवसाय में कमज़ोर होती गयी|
सत्रहवी सदी में डच ने सीलोन, लम्पोंग, जावा और मालाबार क्षेत्रो में अपने उपनिवेश स्थापित कर, मसाला व्यवसाय में अपनी काफी मजबूत पकड़ स्थापित की| ३१ दिसम्बर १६०० में ईस्ट इंडिया की स्थापना के साथ अंग्रेजों ने भी काली मिर्च के साथ अन्य मसाला व्यवसाय में अपना हाथ आज़माया| प्रशासन और सैन्य साथ मिलने की वजह से ब्रिटिश एक महा-शक्ति बनकर उभरा| सन १६०८ में ईस्ट इंडिया कम्पनी का जहाज पहली बार सूरत के बंदरगाह पर प्रवेश किया, और इसी के साथ व्यापार की आड़ में, अंग्रेजो ने भारत को गुलाम बना लिया|
इस एंटी ऑक्सीडेंट गुण और प्रतिरोथक क्षमता से भरपूर काली मिर्च का उत्पादन आज के समय में भारत के अलावा इंडोनेशिया, बोर्नियो और श्रीलंका इत्यादि देशों में भी की जाने लगी है| २०१६ के सर्वे के आधार पर सर्वाधिक पैदावार की क्षमता के साथ वियतनाम विश्व में काली मिर्च का सबसे बड़ा निर्यातक देश बना जो की दुनिया में 39% का उत्पादन करता था| अन्य प्रमुख उत्पादकों में इंडोनेशिया (15%), भारत (10%), और ब्राजील (10%) शामिल हैं।