Lalita Tripathi
भोग : तिरुपति बालाजी
भोग लगाने की परंपरा भारत में सदियों से चली आ रही है और हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि भोजन का पहला अंश अपने इष्ट देव को ही समर्पित करना चाहिए। यही कारण की भारतवर्ष के बहुत से प्राचीन मंदिरों में आज भी भोग या प्रसाद चढाने की परंपरा का निर्वहन होता है |ऐसा माना जाता है की भोग में ईश्वर का अंश है जो भक्त को प्रभु से जोड़ता है | इसी कड़ी में आज हम बात बात करते हैं दक्षिण भारत में स्थित विश्वप्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर में लगने वाले भोग या प्रसाद के बारे में.

Photo Courtesy : Wikipedia
भोग के बारे में जानने से पहले यदि हम उस जगह के इतिहास के बारे में जान लें तो यक़ीनन हम उस संस्कृति से जुडाव महसूस करेंगे। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर को हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है| तिरुपति का उल्लेख प्राचीन तमिल साहित्य में से एक संगम साहित्य में मिलता है| तिरुपति मंदिर के निर्माण में चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का खास योगदान था|
ऐसा माना जाता है की तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था| पंद्रहवी सदी के विजयनगर वंश के शासन के बाद भी इस मंदिर की पहचान सीमित ही रही, परन्तु इसके बाद इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई।
सन 1843 से 1933 तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। हैदराबाद के सातवे निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान भी इस मंदिर को हर साल दान दिया करते थे|
इसके पश्चात् सन 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति तिरुमाला-तिरुपति के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया| आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के बाद इस मंदिर-समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया। मान्यताओं की बात करें तो भक्तों की तिरुपिति वेंकेटेश्वर मंदिर में बेहद आस्था है, और ऐसा माना जाता है की यहाँ आने वाले भक्तो की हर मनोकामना पूरी होती| समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों स्थित यह मंदिर भारत के बेहद संपन्न मंदिरों में से एक है। माना जाता है यहां लगभग साठ हजार या भी इससे भी ज्यादा भक्त रोज आते हैं और त्योहार पर तो इनकी संख्या अनगिनत होती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि यहां का भोग क्या होता है, यहां पर प्रसाद के तौर पर बेसन का लड्डू दिया जाता है। सबसे खास बात है कि ये लजीज भोग वाले लड्डू पंडितों द्वारा मंदिर की रसोई में रोज बनाए जाते हैं। और ये बेहद स्वादिष्ट होते हैं। इसका स्वाद हर किसी को भाता है। इसके अलावा एक और लड्डू, यहाँ की खासियत और वो है कल्याण लड्डू, अब भई लडडू खाकर कल्याण मिल जाए इससे अच्छी बात और क्या है| मान्यता है कि बिना यह भोग चढ़ाए दर्शन पूरे नहीं होते। प्रति दिन करीब दो लाख लड्डुओं का भोग तिरुपति को चढ़ता है। विशेष बात यह है कि ये लड्डू केवल और केवल पुंगनूर प्रजाति की गाय के दूध से बने मावे से बनाए जाते हैं। ऐसा सालों से होता आ रहा है। चित्तूर, आंध्र प्रदेश स्थित पलमनेर फार्म हाउस में कुल 130 पुंगनूर गाय हैं। यहीं से दूध रोजाना तिरुपति मंदिर को भेजा जाता है। अन्य गायों की अपेक्षा इसके दूध में वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है। यहां आटा, चीनी, घी, इलायची और मेवे आदि से लड्डू तैयार किए जाते हैं। स्थानीय भाषा में इस लड्डू को पनयारम कहते है, ये मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं और प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं। पूजन के पश्चात ये लड्डू प्रसाद के तौर पर श्रद्धालुओं को वितरित कर दिए जाते हैं। लड्डू बांटने की ये परंपरा करीब 300 साल पुरानी है, ऐसा माना जाता है की इस प्रथा की शुरुआत 2 अगस्त 1715 में हुई और इसके बाद यह लगातार जारी रही|

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इसके अलावा तिरुपति बालाजी मंदिर में एक और स्वादिष्ट प्रसाद चढ़ाया जाता है जिसे अन्न प्रसाद कहा जाता है| इसमें चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर के लडुओं ने बहुत बड़े कीर्तिमान बनाए हैं। तो है ना लाजवाब भोग, ऐसे भोग जिससे बस जीवन संवर जाए और मन तृप्त हो जाए ऐसा है तिरुपति बाला जी मंदिर का भोग।